जानिए क्या है मकसद आनंद मोहन को जेल से निकालने के पीछे। क्या 2024 के लोक सभा में आनंद मोहन एक एक्स फैक्टर साबित होंगे ?

0
149

लम्बे समय से रिहाई पर चल रही बहस के बाद पूर्व सांसद और बाहुबली कहे जाने वाले आनंद मोहन की आज सुबह 4 बजे जेल से रिहाई हो चुकी है। लोग आनंद मोहन की रिहाई को राजनितिक फायदे नुकसान से जोड़ कर देख रहें हैं। आनंद मोहन के रिहाई से पहले सड़क पर कई जगह उसके स्वागत के लिए उसके पोस्टर लगे दिखाई दिए।

IAS officer killed by Aanand Mohan.

क्यों थे बंद जेल में आनंद मोहन ?


आपको बता दें की आनंद मोहन गोपलगंज के तत्कालीन डीएम जी . कृष्णैया के हत्याकांड में मुख्या आरोपी घोषित होने के बाद जेल की सजा काट रहें है। परन्तु तत्कालीन परिस्थितियों को देख कर ऐसा बिलकुल नहीं लगता की जेल की सजा कुछ ख़ास प्रभाव दाल पाई है आनंद मोहन पर। दरअसल जेल से निकलते समय आनंद मोहन उसी तेवर में दिखा जो १६ साल पहले दिखा था।

रिहाई के पीछे हैं राजनितिक अजेंडे?

लोगों को अब आनंद मोहन के इस रिहाई के पीछे राजनितिक पार्टियों के अपने अजेंडे नजर आ रहें है।
दरअसल 90 के दशक में आनंद मोहन भूमिहार और राजपूत वोटर के मसीहा माने जाते थे। उनकी राजनितिक कौशल और बाहुबली रवैया बिहार की राजनितिक परिणाम में अहम् रोल निभाता था। अब जब एक बार फिर आंनद मोहन जेल से बहार निकला है तो लोग ऐसा मान रहें हैं की पार्टी अपने फायदे के लिए आनंद मोहन का इस्तमाल कर सकती है। लेकिन ऐसा कहना मुश्किल भी होगा क्यूंकि अब बिहार की जनता और राजनितिक स्वरुप दोनों बदल चुकें हैं।

1990 से सुरु किया अपना राजनितिक सफर


आनंद मोहन के राजनितिक कॅरिअर की बात करें तो वह बिहार में ऐसी कोई पार्टी नहीं रही जिसका हिस्सा वो नहीं रहें। वह बीजेपी राजद ,जदयू , सपा आदि सबके साथ चुनावी खेल खेल चुकें हैं। आनंद मोहन ने अपने राजनितिक करियर की शुरुआत 1990 में राजद के साथ हुई। और वह राजद से पहली बार विधायक बनें। परन्तु यह लम्बे समय तक नहीं चला दरअसल लालू यादव और इनके बिच के मन मुटाव के बिच का कारन मंडल कमीशन था जिसका विरोध आनंद मोहन कर रहें थे जबकि लालू यादव समर्थन कर रहें थे। फिर आनंद मोहन ने आरक्षण को मुद्दा बना कर स्वर्ण जन के लिए आवाज उठाने का काम किया। और तब से वह सवर्णों के नेता कहे जाने लगें। आनंद मोहन ने अपनी एक पार्टी भी बनाई बिहार पीपुल्स पार्टी के नाम से परन्तु यह भी कुछ ख़ास नहीं रहा।


1994 के लोक सभा के उपचुनाव में आनंद मोहन की पत्नी लवली मोहन ने समता पार्टी से टिकट ले कर राजद को हरा कर संसद पहुंची। जिसके बाअद आनंद मोहन की ताकत और बढ़ गई। फिर समता पार्टी से आनंद मोहन ने भी चुनाव लड़ा पर हार गए और फिर 1998 के चुनाव में राजद का हाथ थाम शिवहर से जित कर संसद पहुंचे।

जेल जाने के बाद पत्नी ने संभाला बागडोर

आनद मोहन जेल तो चले गएँ पर इनके परिवार का राजनितिक सफर अभी ख़तम नहीं हुआ है। इनकी पत्नी लवली मोहन अभी भी राजनीती में सक्रिय हैं। लेकिन 2010 और 2014 दनो लोक सभा चुनावों में शिकस्त का सामना करना पड़ा था। और इस बार जब आनंद मोहन बाहर आ गएँ हैं तो जाहिर है की राजनितिक लहार में ये भी डुबकी लगायेंगे।

स्वर्ण वोटों पर थी पकड़

अगर वोटों के समीकरण को देखें तो बिहार के कुल 40 सीटों में लगभग 15 सीटें स्वर्ण जातियों के कब्जे में रहती हैं। यानी इतने सीटों पर वे जित हांसिल करते हैं। और सहरसा, शिवहर, वैशाली और औरंगाबाद जैसे जगहों पर आनंद मोहन के वोटर अच्छे खासे रहें हैं। इसके अलावे छपरा , आरा जैसे इलाकों में भी आनंद मोहन की बर्चस्व रही है। हालाँकि यह कहना गलत नहीं होगा की बिहार के वोटिंग समीकरण में पिछले कई वर्षों में बदलाव होते आ रहें हैं। अब इसका फायदा भी हो सकता है और नुकसान भी। बहरहाल अब यह देखना बाकी है की आंनद मोहन के बाहर निकलने के पीछे का मकसद क्या है।