1857 की जंग में हिंदुस्तान के कई राजाओं ने अंगेजों के खिलाफ अपनी जान की बाज़ी लगा दी थी.

0
185

जब अंग्रेज भारत आए थे तो उन्हें छोटा नागपुर की भौगोलिक स्थिति के कारण अपने पैर पसारने में परेशानी हो रही थी. ऐसे हालात में अंग्रेज अफसर थॉमस विल्किंसन ने यहां के राजा जगतपाल से हाथ मिलाया था.

रांची. 1857 की जंग में हिंदुस्तान के कई राजाओं ने अंगेजों के खिलाफ अपनी जान की बाज़ी लगा दी थी, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने देश से गद्दारी की थी. ऐसे ही एक राजा को मिले श्राप की कहानी आज भी झारखंड की राजधानी रांची के आसपास सुनाई जाती है. रांची से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर पिठौरिया गांव स्थित राजा जगतपाल सिंह का किला खंडहर बन चुका है. यहां मौजूद हर दीवार लगभग ढह चुकी है और छत का नामोनिशान मिट चुका है. लेकिन दीवारों के अवशेष बताते हैं कि किसी जमाने में ये एक बेहद भव्य इमारत रही होगी, तो सवाल ये कि आखिर ये महल इस हालत में कैसे पहुंच गया. आखिर कैसे ये खूबसूरत इमारत एक खंडर में तब्दील हो गई. इसका जवाब है- एक श्राप… एक ऐसा श्राप जिसका कहर आज भी हर साल वज्रपात के रूप में इस किले पर बरसता है. हर साल गिरने वाले आसमानी कहर ने 100 कमरों के इस महल को खंडहर बना दिया है.

दरअसल पिठौरिया मुंडा एवं नागवंशी राजाओं का केंद्र रहा है. मगर, मौजूदा किला आधुनिक भारत का ही एक नमूना है. बताया जाता है कि 1831-32 के समय कोल विद्रोह के दौरान यह जगह सत्ता का केंद्र बनी. इस तरह इसका इतिहास करीब 200 साल पुराना है. यहां पिठौरिया के राजा जगतपाल सिंह थे. उनके पास 84 गांवों की जागीर थी. उन्होंने अपनी प्रजा की भलाई के लिए खूब काम किए, लेकिन एक गलती ने उन्हें खलनायक बना दिया.

अंग्रेजों की मदद की थी जगतपाल ने
जैसे की अंग्रेज भारत आए थे तो उन्हें छोटा नागपुर की भौगोलिक स्थिति के कारण अपने पैर पसारने में परेशानी हो रही थी. ऐसे हालात में अंग्रेज अफसर थॉमस विल्किंसन ने यहां के राजा जगतपाल से हाथ मिलाया. जगतपाल अंग्रेजों की मदद करने लगे. कुछ सालों तक ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा और फिर वक्त आया आज़ादी की पहली लड़ाई का. 1857 का विद्रोह हुआ तो ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने अंग्रेजों की हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए आक्रमण करना चाहा, लेकिन उनके इस हमले को रोकने के लिए अंग्रेज़ों की ढाल बने राजा जगतपाल सिंह.