बिहार में अगर महिलाओं की स्थिति को देखा जाए तो वह पुरुषों के स्थिति के मुकाबले काफी पीछे हैं। मगर बदलते वक़्त और बदलते बिहार के साथ बिहार की महिलायें भी आगे बढ़ रही है। और उनके आगे बढ़ने में स्वयं सहायता समूहों या जीविका को एक अहम् योगदान माना जा सकता है। बिहार में कुछ ऐसे ही जीविका दीदियां हैं जो खुद आठवीं पास है परन्तु वे देश के कई आईएएस और आलाधिकारियों को ट्रैंनिंग दे रही है। सुनने में अटपटा है पर सच जरूर है। जीविका समूह से जुड़ीं ये महिलाएं देश के आठ राज्यों में काबिलियत मनवाने में सफल रही हैं।
पर्दे में रहने वाली ये महिलाएं मासिक 42 हजार तक की कमाई भी कर लेती हैं। दरअसल ये महिलायें ,अधिकारियों को स्वयं सहायता समूह, ग्राम संगठन व संकुल स्तरीय समिति, क्लस्टर लेवल फेडरेशन निर्माण के गुर बताती हैं। वहीं, बैंक के उच्चाधिकारियों को लोन देने, समय पर वापस लेने, लोन के रुपयों के सदुपयोग की बारीकियां सिखाती हैं। कई बैंकों में ये कोर कमेटी में भी शामिल हैं। ये आला अधिकारियों के साथ बैठकर बैंकों के संचालन व उनकी बेहतरी की रणनीति तय करती हैं। गौरतलब है की किसी भी जिले के जीविका दीदियों को किसी नवनिर्वाचित आईएएस से ग्राम संगठन और स्वयं सहायता समूह के बारे में अधिक जानकारी होती है। ऐसे में स्वयं सहायता समूहों के विकास और उनके हित के लिए एक आईएएस को उसे समझने में ये जीविका दीदियाँ उनकी मदद करती हैं। गौरतलब है की जीविका की शुरुआत सरकार के तरफ से २००८ में सुरु हुई थी जिसके तहत महिलाओं को आत्मनिरहर बनाने की कोशिश की जा रही है। महिलाओं का संगठन बनाकर पांच रुपये मासिक बचत की आदत डलवायी। फिर बैंकों से जोड़ा। पहले 20 हजार तक तो बाद में डेढ़ लाख तक के लोन दिये। दीगर प्रक्रिया यह कि ये समूह की महिलाएं ही लोन देतीं। वापस लेतीं। सूद भी खुद तय करतीं। बैंकिंग प्रोसेसिंग व लेखा बही भी खुद लिखतीं। हर गांव में चार से 20 ऐसी महिलाओं को और बेहतर करने की सीख दी गयी। बहरहाल यह तो मानना होगा की जीविका के आने से महिलाओं की आत्मशक्ति को बढ़ावा मिला है। और वह समाज के बृद्धि और विकास का धीरे धीरे हिस्सा बनते जा रहें हैं।